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शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति त्रयोदशोऽध्यायः

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति द्वितीयोऽध्यायः

ऐङ्कारी सृष्टिरूपायै ह्रीङ्कारी प्रतिपालिका ।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ १० ॥

श्री सरस्वती अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।

श्री प्रत्यंगिर अष्टोत्तर शत नामावलि

श्री महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् (अयिगिरि नंदिनि)

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।

And the worry of not getting is born in that Room. But in meditation, when That is recognized, the intellect can enter into a dimension of space in which motion is inaction. We don't know what love is, for within the Room created by imagined about itself since the me, enjoy could be more info the conflict with the me as well as not-me. This conflict, this torture, is not love. Thought is the really denial of love, and it can't enter into that Area exactly where the me isn't. In that space is the benediction which man seeks and can't come across. He seeks it within the frontiers of assumed, and considered destroys the ecstasy of the benediction."

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र आपके जीवन की समस्याओं और विघ्नों को दूर करने के लिए एक शक्तिशाली उपाय है। मां दुर्गा के इस स्तोत्र का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है, उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ

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